27-Nov-2023
10:10:02 am
गरीबी घटी, आय असमानता भी घटे
ऐसे में गरीब एवं कमजोर वर्ग के युवाओं के लिए रोजगार के मौके जुटाने के लिए एक ओर सरकार के द्वारा डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रही कमियों को दूर करना होगा, वहीं दूसरी ओर कौशल प्रशिक्षण के साथ नए स्किल्स सीखने होंगे। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने और उनके लिए रोजागर के अधिक अवसरों के लिए भी अधिक प्रयास करने होंगे। ऐसा होने पर ही गरीबी घटाने और आय में असमानता को कम करने में सफलता प्राप्त की जा सकेगी। फिलहाल गरीब और अमीर की आय में दिन-रात का अंतर है…
हाल ही में केंद्र सरकार ने 80 करोड़ से अधिक पात्र लोगों को नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण की योजना आगामी पांच वर्षों यानी दिसंबर 2028 तक के लिए बढ़ा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुताबिक गरीबों के सशक्तिकरण के लिए नि:शुल्क खाद्यान्न की जरूरत बनी हुई है। पिछले पांच वर्षों में 13 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, ऐसे में पूरे देश के गरीब लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की दिशा में देश आगे बढ़ रहा है। नि:संदेह मुफ्त खाद्यान्न योजना की जरूरत न केवल गरीबों के सशक्तिकरण के लिए, वरन आय असमानता घटाने के लिए आवश्यक बनी हुई है। इस परिप्रेक्ष्य में हाल ही में 6 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी 2015-2016 के मुकाबले 2019-2021 के दौरान 25 फीसदी से घटकर 15 फीसदी आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यद्यपि गरीबी निवारण अभियान से भारत में गरीबी घटी है, लेकिन अभी भी भारत में आय की असमानता बढ़ी हुई है। यह उल्लेखनीय है कि एशिया पेसेफिक ह्यूमन डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2000 में जहां करीब 37 हजार रुपए थी, वहीं वर्ष 2022 में बढक़र करीब 2 लाख रुपए हो गई है। गौरतलब है कि भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 10 सितंबर 2013 को अधिसूचित हुआ है। इसका उद्देश्य नागरिकों की गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए वहनीय मूल्यों पर गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न की 5 किलोग्राम मात्रा उपलब्ध कराना है। ऐसे में इसके तहत राशन कार्डधारकों को चावल 3 रुपए, गेहूं 2 रुपए और मोटे अनाज 1 रुपए प्रति किलो वितरण की शुरुआत की गई।
कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त अनाज दिए जाने की भी शुरुआत की। कई बार इसकी अवधि बढ़ाने के बाद सरकार ने एक जनवरी 2023 से दिसंबर 2023 तक एक वर्ष के लिए इस योजना को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अनाज वितरण की योजना में मिलाने का निर्णय किया। सरकार ने चावल और गेहूं को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत क्रमश: तीन रुपए और दो रुपए प्रति किलो की दर से बेचने के बजाय मुफ्त कर दिया। अब वर्ष 2028 तक एक बार फिर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत आने वाली देश की दो-तिहाई आबादी को राशन प्रणाली के तहत मुफ्त में अनाज देने की भारत की पहल दुनिया भर में रेखांकित की जा रही है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष सहित दुनिया के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा के वैश्विक संगठनों के द्वारा भारत की खाद्य सुरक्षा की जोरदार सराहना की गई है। आईएमएफ के द्वारा पिछले दिनों प्रकाशित रिसर्च पेपर में कोविड की पहली लहर 2020-21 प्रभावों को भी अध्ययन में शामिल करते हुए कहा गया है कि सरकार के पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है और इससे अत्यधिक गरीबी में भी कमी आई है। आईएमएफ के कार्यपत्र में कहा गया है कि खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम कोविड-19 से प्रभावित वित्तीय वर्ष 2020-21 को छोडक़र अन्य वर्षों में गरीबी घटाने में सफल रहा है। दुनिया के अर्थ विशेषज्ञ यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि कोविड-19 के बीच भारत में खाद्यान्न के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचे सुरक्षित खाद्यान्न भंडारों के कारण ही देश के 80 करोड़ लोगों को लगातार मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध होने के कारण वे गरीबी के दलदल में फंसने से बच गए।
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