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06-Jun-2024 6:11:51 pm

कौन हैं अवधेश प्रसाद, जिन्होंने भाजपा से छीन ली अयोध्या वाली सीट

कौन हैं अवधेश प्रसाद, जिन्होंने भाजपा से छीन ली अयोध्या वाली सीट

नई दिल्ली लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है। रामनगरी अयोध्या वाली सीट भी भगवा पार्टी नहीं बचा सकी, जहां हाल ही में भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। नतीजे सामने आने के बाद फैजाबाद की इस सीट ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। भाजपा से इस सीट को छीनने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता अवधेश प्रसाद सिंह की चर्चा हो रही है। वह दलित हैं और उन्होंने गैर-आरक्षित सीट से चुनाव जीता है। ऐसा करने वाले वह इकलौते नेता हैं। उन्होने भाजपा के दो बार के मौजूदा सांसद लल्लू सिंह को 54567 वोटों से हराया है।

 
अवधेश प्रसाद को खुद को सिर्फ दलित नेता के रूप में पहचानना पसंद नहीं है, लेकिन हकीकत यही है कि उनकी पहचान सपा के दलित चेहरे के रूप में होती है। वह इससे पहले सात बार विधायक रह चुके हैं। पहली बार वह सांसद बने हैं।
 
अवधेश प्रसाद ने लखनऊ विश्वविद्यालय से लॉ में स्नातक किया। वह महज 21 साल की उम्र से राजनीति में सक्रिय हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल में भी वह रह चुके हैं। 1974 में अयोध्या जिले के सोहावल सीट से उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा।
 
मां के निधन पर भी पैरोल नहीं
आपातकाल के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। जेल में रहते हुए उनकी मां का निधन हो गया था। उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए उन्हें पैरोल भी नहीं मिला था। जेल से निकलने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और पूरी तरह से राजनीति में उतर आए। 1981 में वह लोकदल और जनता पार्टी दोनों के महासचिव बने।
 
पिता के अंतिम संस्कार में नहीं हुए शामिल
अवधेश प्रसाद अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके। वह अमेठी में लोकसभा उपचुनाव के बाद हुई वोटों की गिनती में व्यस्त थे। राजीव गांधी ने अपने पहले चुनाव में लोकदल के शरद यादव को हराया था। अवधेश प्रसाद को चरण सिंह से सख्त निर्देश मिला था कि कि वे मतगणना कक्ष को न छोड़ें। सात दिनों तक वोटों की गिनती के दौरान वह अपने पिता के निधन की खबर सुनने के बावजूद मतगणना केंद्र पर ही डटे रहे।
 
मुलायम के साथ सपा की स्थापना
जब जनता पार्टी बिखर गई तो अवधेश प्रसाद ने मुलायम सिंह के साथ हो लिए। उनके साथ मिलकर 1992 में सपा की शुरुआत की। उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और केंद्रीय संसदीय बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया था। बाद में उन्हें सपा के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर प्रमोट किया गया। अभी भी वह इस पद पर बने हुए हैं।
 
उन्होंने 1996 में अकबरपुर लोकसभा सीट से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। यह सीट पहले फैजाबाद जिले में हुआ करती थी। विधानसभा चुनावों में किस्मत ने उनका खूब साथ दिया है। वह नौ बार लड़े हैं, जिनमें से सात बार सफलता मिली है।

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