गरियाबंद :- जिले के 40 गांवों के स्कूलों में 6 करोड़ के लागत से लगे फ्लोराइड रिमूवल प्लांट स्थापित होने के कुछ माह बाद बंद हो गए. जिससे बच्चों की सेहत पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है. प्रभावित गांवों से हर साल 100 से ज्यादा स्कूली छात्र डेंटल फ्लोरोसिस के मरीज बन रहे. वर्तमान में इनकी संख्या 2 हजार से ज्यादा हो गई है लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं हैवर्ष 2016 में ही पता चल गया था कि देवभोग ब्लॉक के 40 गांव में मौजूद स्कूलों में तय मानक से कई गुना ज्यादा फ्लोराइड मात्रा युक्त पेय जल की सप्लाई हो रही है. प्रशासन ने कार्य योजना बना कर सभी प्रभावित स्कूलों में फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाने का निर्णय लिया. प्रति प्लांट 14.50 लाख रुपये का बजट भी तय हुआ.
सितंबर 2021 में रायपुर के कंपनी मेसर्स आशीष बागड़ी के साथ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने कार्य का अनुबंध किया. जारी टेंडर के मुताबिक प्रत्येक काम को ठेका कंपनी ने 6 प्रतिशत एवव में करने का करार कर लिया. तब कार्य की लागत बढ़ कर 15.37 लाख हो गई. ठेका कंपनी ने तय तीन माह के बजाए काम को अक्टूबर 2022 तक पूरा कर के दिया. लेकिन प्लांट लगने के कुछ माह बाद एक-एक करके पूरे 40 प्लांट बंद हो गए. फरवरी 2023 की स्थिति में ब्लॉक में सभी 40 फ्लोराइड रिमूवल प्लांट बंद हो चुके थे ,और छात्रों को पहले की तरह हाई फ्लोराइड युक्त पानी मजबूरी में पीना पड़ा.मामले में जब धौराकोट, मगररोड़ा, गाड़ाघाट,कांडपारा, पीठापारा के प्रधान पाठकों से बात करने पर बताया कि बंद होने के बाद चालू कराने ठेकेदार के मुनीम से लेकर पीएचई विभाग के इंजिनियर को तक सूचित किए पर कोई सुध लेने नहीं आया.
मगररोड़ा प्राथमिक मिडिल स्कूल की सप्लाई वाले प्लांट में ताला लटका था,अंदर कांटे भर दिए गए थे. धौराकोट,गाड़ाघाट, कुसकोना, डूमरपीठा, चीचिया,माहुलकोट,मूंगीया के प्लांट से पम्प और अंदरूनी समान कंपनी के लोग निकाल ले गए. कांडपारा, नांगलदेही, पुरनापानी, धूपकोट जैसे 10 से ज्यादा स्कूलों के सोलर प्लेट क्षतिग्रस्त मिले.
साल भर पहले पीएचई विभाग ने प्रभावित गांव के 51सोर्स की जांच किया था.स्कूल सप्लाई सोर्स के अलावा इन गांव के सभी सोर्स के सेंपल लिया गया.साधारण पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1 पीपीएम से 1.5 पीपीएम होना चाहिए.लेकिन जांच में प्रभावित गांव में अधिकतम 3 पीपीएम से 8.92 पीपिम की मात्रा पेय जल में पाई गई. रिपोर्ट के बाद इन सोर्स को ना तो बंद कराया गया न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई.
पड़ताल में पता चला की हेवी फ्लोराइड वाले ग्राम नांगलदेही, पीठापारा, दरलीपारा, गोहरापदर,झाखरपारा , घूमगुड़ा,धुपकोट,मोखागुड़ा, निष्टिगुड़ा, सुकलीभाठ, मूरगुडा, खम्हारगुड़ा, माहुकोट, पूरनापानी, बरबहली, बाड़ी गांव, कर्चिया, धौराकोट, मूड़ागाव, मगररोडा जैसे प्रत्येक गांव में 50 से 60 बच्चे डेंटल फ्लोरोसीस से ग्रसित मिले. सभी की उम्र6 से 10 साल की है. जानकारी के मुताबिक ब्लॉक भर में इनकी संख्या 2 हजार से ज्यादा है.
मामले में देवभोग अस्पताल में पदस्थ डेंटिस्ट डॉक्टर सनी यादव ने कहा कि फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से डेंटल फ्लोरोसीस होता है. दांत में पिला पन इसकी पहचान है. ये ला इलाज रोग है,इसका लक्षण 6 से 10साल के उम्र के बच्चो के दांत में दिखता है. मात्रा समय रहते कम नहीं ही किया गया तो फ्लोराइड हड्डियों को प्रभावित करता है. आगे चल कर किडनी रोग, बदन में अकड़न, बुखार जैसे लक्षण दिखाई देता है. बड़ों के हड्डियों में झुकाव, कमर बैंड होना जैसे लक्षण भी फ्लोराइड अधिकता के दुष्प्रभाव के लक्षण में शामिल है. पीएचई विभाग के एसडीओ सुरेश वर्मा ने कहा कि वर्तमान के ईई इस प्लांट को लेकर गंभीर हैं. उन्हें जैसे पता चला, उन्होंने प्लांट मेंटेनेंस लिए कार्य योजना बनाकर बजट पास कराया है. अब टेंडर लगाए जा चुके हैं. जल्द ही सभी प्लांट के मेंटेनेंस कार्य शुरू कर दिए जाएंगे.
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