बिलासपुर। राष्ट्रीय खनिज विकास निगम लिमिटेड (एनएमडीसी) ने दंतेवाड़ा के दो आदिवासी युवकों को सिर्फ इसलिए पात्राता सूची से बाहर कर दिया कि प्रस्तुत विकलांगता प्रमाण पत्र को जारीकर्ता प्राधिकारी यानी जिला मेडिकल बोर्ड द्वारा सत्यापित नहीं किया गया है। मामले की जांच हुई तब पता चला कि युवाओं के प्रमाण पत्र का रिकार्ड सिविल सर्जन दक्षिण बस्तर के कार्यालय में ही नहीं है। हाई कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही माना है। कोर्ट ने कलेक्टर व सिविल सर्जन दक्षिण बस्तर को इस लापरवाही के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना ठोंका है। कोर्ट ने कहा है कि आदेश की प्रति प्राप्त होने के 90 दिनों के भीतर दोनों याचिकाकर्ताओं को एक-एक लाख रुपये का भुगतान करेंगे। तय अवधि के भीतर भुगतान न करने पर याचिका दायर करने की अवधि से 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी देना पड़ेगा।
विजय कुमार यादव व महेश राम ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई थी। हाई कोर्ट ने दोनों याचिकाओं की एकसाथ सुनवाई प्रारंभ की। मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक तिवारी की सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रीय खनिज विकास निगम लिमिटेड बैलाडीला लौह अयस्क खदान, किरंदुल काम्प्लेक्स, जिला दंतेवाड़ा, प्रबंधक (पर्सनल), प्रशासन एवं कार्मिक विभाग, राष्ट्रीय खनिज विकास निगम, बैलाडीला लौह अयस्क खदान, किरंदुल काम्प्लेक्स, जिला दंतेवाड़ा, कलेक्टर, जिला दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा व सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक को पक्षकार बनाया है।
एनएमडीसी ने 29 मई 2015 को विविध परिचारक (प्रशिक्षु) के पद के लिए समूह “डी” में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाया। याचिकाकर्ता विजय कुमार ने इस संबंध में विकलांगता प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है जो 13 नवंबर 2006 को उनके पक्ष में जारी किया गया था। इसके अनुसार उनकी 40 फीसद गतिशीलता थी। याचिकाकर्ता महेश राम ने भी अपना विकलांगता प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है जो 13 नवंबर 2006 को जारी किया गया था। इसके तहत वह श्रवण हानि यानी बहरापन की 40 प्रतिशत विकलांगता से ग्रस्त था। याचिकाकर्ताओं के चयन के बाद एनएमडीसी द्वारा जांच की गई।
इसमें यह पता चला कि याचिकाकर्ताओं के प्रमाण पत्र संबंधित मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रमाणित नहीं है। इसलिए एनएमडीसी ने सिविल सर्जन कार्यालय से सत्यापन के लिए एक समिति का गठन किया है। कार्यालय सिविल सर्जन ने एनएमडीसी को सूचित किया है कि विकलांगता प्रमाण पत्र के सत्यापन रिकार्ड उनके कार्यालय में उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए इसे सत्यापित नहीं किया जा सका। मेडिकल बोर्ड की जानकारी के बाद एनएमडीसी ने सत्यापित विकलांगता प्रमाणपत्र जमा न करने के कारण याचिकाकर्ताओं को कारण बताओ नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया था।
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