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18-Nov-2023 3:42:16 pm

बैंक को भारी पड़ा 142 साल पुराना ये कानून

बैंक को भारी पड़ा 142 साल पुराना ये कानून

डिजिटल दुनिया में हमारे फोन ने कई आसान काम बताए हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स अब पल झपकते ही हो जाता है। लेन-डेन के माध्यम से इसकी जांच भी कम हो गई है। ऐसे में अगर किसी बैंक को चेक क्लेयरेंस से जुड़ा 142 साल पुराना कानून याद दिला दे तो क्या होगा? अरे सर, ऐसे पर बैंक का स्टॉक खत्म हो रहा है। ऐसा सच में हुआ है. आइए आपको बताते हैं पूरी कहानी? अब देश में तीर्थयात्रियों के चेक क्लीयरेंस के लिए ‘चेक ट्रॉलेशन सिस्टम’ (सीटीएस) आ गया है। इसका चेक का टिकट क्लीयरेंस लगभग बंद हो गया है। लेकिन देश में आज भी 1881 का एक कानून लागू है, जो टॉयलेट चेक क्लेयरेंस के कई प्रावधानों को वैध बनाता है। इनमें से एक नियम बैंक ऑफ क्रेडिट के लिए महंगा साबित हुआ।


बैंक को मुआवज़ा दिया गया
ये मामला देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का है। टीओआई की एक खबर के मुताबिक, बीमा क्षेत्र में काम करने वाले धनंजय नन्स को सारस्वत बैंक ने एक चेक दिया था, जिसे उन्होंने बैंक ऑफ इंडिया में जमा कर दिया था। सारस्वत बैंक ने मासूम नन्स के पक्ष में इस चेक का समर्थन किया था। इसके साथ ही अन्य बैंकों के हस्ताक्षर प्रमाणपत्र भी दिए गए थे। बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारियों ने यह कहा है कि चेक रिटर्न दिया गया है कि इस पर क्रॉस का निशान है और कानून के अनुसार यह एक गैर-हस्तांतरणीय चेक है। ऐसे में किसी तीसरे पक्ष के पक्ष में चेक नहीं किया जा सकता। इस डिफॉल्ट बैंक ऑफ इंडिया को 1881 के ‘नेगोशिबल आर्टिस्ट्स एक्ट-1881’ को भूला दिया गया था।

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